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खड़गे परिवार को लाभ पहुंचाने के लिए केआईएडीबी भूमि आवंटन में गड़बड़ी की गयीः भाजपा

बेंगलुरु, 28 अगस्त : कर्नाटक विधान परिषद में विपक्ष के नेता चालावाड़ी नारायणस्वामी ने राज्य सरकार पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के परिवार को लाभ पहुंचाने के लिए औद्योगिक भूमि के आवंटन के लिए निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार करने का बुधवार को आरोप लगाया।

श्री नारायणस्वामी ने आज कहा कि राज्य कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआईएडीबी) के माध्यम से “अवैध और जल्दबाजी में” भूमि आवंटन प्रक्रिया अपनायी है। उन्होंने सरकार पर कांग्रेस श्री खड़गे के परिवार (जिसमें उनके पुत्र एवं मौजूदा मंत्री प्रियांक खड़गे और तीन अन्य रिश्तेदार शामिल हैं) को लाभ पहुंचाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं को “दरकिनार” करने का आरोप लगाया।

श्री प्रियांक और राज्य के भारी एवं मध्यम उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने पहले ही आरोपों को खारिज कर दिया है। श्री नारायणस्वामी ने सरकार की आलोचना करते हुए इसे “स्पष्ट रूप से गैरकानूनी ” प्रक्रिया बताया और कहा कि केआईएडीबी की भूमि को केवल 14 दिनों में आवंटित किया गया था। उन्होंने दावा किया कि इस तरह के महत्वपूर्ण निर्णय के लिए यह समय सीमा बहुत कम है।

उन्होंने संवाददाता से कहा, “केआईएडीबी की जमीन आवंटित करने की प्रक्रिया बिना उचित जांच के जल्दबाजी में पूरी की गई, जिसमें केवल 14 दिन लगे, जबकि पारदर्शिता और उचित परिश्रम सुनिश्चित करने के लिए कम से कम एक महीने का समय लगना चाहिए था।” उन्होंने आरोप लगाया कि यह खड़गे परिवार को “लाभ” पहुंचाने के लिए किया गया था। उन्होंने दावा किया कि कई भूखंड, जिन्हें मूल रूप से वाणिज्यिक स्थानों के रूप में नीलामी के लिए नामित किया गया था, उन्हें “नागरिक सुविधाओं” के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया और फिर बिना किसी सार्वजनिक नीलामी के खड़गे परिवार के सदस्यों को आवंटित किया गया। उन्होंने विशेष रूप से उन भूखंडों की ओर इशारा किया जो एक स्टार होटल और एक अपार्टमेंट निर्माण कंपनी को दिए गए हैं। उन्होंने कहा , “यह नियमों का घोर उल्लंघन है। ये सीए प्लॉट व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नहीं हैं, फिर भी इन्हें स्थापित मानदंडों का स्पष्ट उल्लंघन कर सौंप दिया गया। श्री मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रभाव में जिस तरह से इन प्लॉटों को आवंटित किया गया, वह न केवल अनैतिक है, बल्कि अवैध भी है।”

विपक्षी नेता यहीं नहीं रुके, उन्होंने सरकार पर हाशिए पर पड़े समुदायों की जरूरतों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया और कहा कि सरकार निजी संस्थाओं को भूमि आवंटित करने में तो तत्पर है, लेकिन वह समाज कल्याण विभाग को अनुसूचित जाति एवं जनजाति (एससी और एसटी) छात्रावास बनाने के लिए भूमि आवंटित करने में विफल रही। श्री नारायणस्वामी ने 71 स्वीकृत आवेदकों के बारे में भी चिंता जताई, जो आवश्यक धनराशि का 30 प्रतिशत भुगतान करने के बावजूद दो साल से अपनी भूमि आवंटन का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने श्री प्रियांक पर भूमि हासिल करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया, जिससे इन दलित आवेदकों को कोई सहारा नहीं मिला। उन्होंने सवाल किया, “श्री प्रियांक आपने प्रभाव के जरिए अपनी जमीन हासिल कर ली, लेकिन उन 71 दलितों का क्या जो सालों से इंतजार कर रहे हैं?”

श्री नारायणस्वामी ने सवाल उठाया कि भूमि आवंटन ऑनलाइन नीलामी के बजाय ऑफ़लाइन क्यों किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस निर्णय के कारण भूखंडों का कम मूल्यांकन हुआ, जिससे संभावित राजस्व में 500 से 600 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उन्होंने आरोप लगाया, “इस ऑफ़लाइन प्रक्रिया को जानबूझकर चुना गया, ताकि सरकार आवेदकों के चेहरे देख सके और भूखंडों का कम मूल्यांकन कर सके।” उन्होंने 21 मार्च, 2023 के उच्चतम न्यायालय निर्देश का हवाला दिया, जिसमें केआईएडीबी को ऐसे भूखंडों की नीलामी करने का निर्देश दिया गया था और मांग की कि सरकार तुरंत मौजूदा आवंटन रद्द करे, साइटों को पुनः प्राप्त करे और पारदर्शी पुनः नीलामी करे। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में खड़गे परिवार की भागीदारी न केवल गंभीर नैतिक चिंताएँ पैदा करती है, बल्कि सरकार की भूमि आवंटन प्रक्रियाओं में जनता के विश्वास को भी गंभीर रूप से कम करती है।

श्री नारायणस्वामी ने कहा, “यह पूरा प्रकरण भ्रष्टाचार और पक्षपात का एक स्पष्ट उदाहरण है।सरकार को इस भूल को सुधारने के लिए शीघ्रता से कार्य करना चाहिए, भूखंडों की पुनः नीलामी करनी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सत्ता का ऐसा दुरुपयोग दोबारा न हो।”

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