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छप्पन भोग महोत्सव में गोवर्धन में बही भक्ति रस की धारा

मथुरा, 17 सितंबर: गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर तलहटी में ‘छप्पन भोग’ महोत्सव में आज गोवर्धन कस्बे का कण कण भक्ति रस से सराबेार हो गया तथा परिक्रमा करने आए लाखों श्रद्धालु गिर्राज प्रभु के अनूठे श्रंगार से अभिभूत हुये।

गिर्राज सेवा समिति द्वारा आयोजित यह छप्पन भोग महोत्सव हर साल किसी न किसी जन कल्याण या राष्ट्र के कल्याण के लिए समर्पित होता है।

कारगिल युद्ध में भारत की विजय, क्रिकेट के विश्व कप में भारत की विजय, चन्द्रयान की सफलता इस आयोजन के गवाह हैं।
इस बार भी यह आयोजन राष्ट्र की खुशहाली एवं समृद्धि के लिए आयोजित किया गया है।

इस आयोजन के लिए हर साल एक माह पहले से तैयारी की जाती है तथा शुचिता इस कार्यक्रम की विशेषता है।

समिति के संस्थापक अध्यक्ष मुरारी अग्रवाल ने बताया कि इस आयोजन के लिए सामग्री खरीदने, गिर्राज प्रभु की छवि का विमोचन करने , अन्नपूर्णा रथ से प्रसाद की सामग्री को गोवर्धन भेजने, प्रसाद बनाने के लिए भट्ठी पूजन से लेकर प्रसाद बनाने, गिर्राज प्रभु का अनूठा श्रंगार करने आदि का कार्य शुभ महूर्त देखकर किया जाता है।

वास्तव में छप्पन भोग भगवत आराधना का सबसे उत्तम साधन माना जाता है इसके माध्यम से सामाजिक एकता बनाए रखने का संदेश भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में दिया था।

इस आयोजन की ऐतिहासिकता के बारे में गर्ग संहिता का जिक्र करते हुए समिति के संस्थापक अध्यक्ष ने बताया कि द्वापर में कान्हा ने नन्दबाबा से एक बार कहा कि ब्रजवासी इन्द्र की पूजा करते हैं जब कि उन्हें गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए क्योंकि गोवर्धन गायों केा भोजन देता है।

इसके बाद नन्दबाबा के कहने पर जब ब्रजवासियो ने गिर्राज जी की पूजा की थी तो सबसे पहले यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं की थी।

वे एक रूप से गोवर्धन महराज का पूजन कर रहे थे तो दूसरे रूप में ब्रजवासियों द्वारा अर्पित किये गए छप्पन भोग को अरोग रहे थे।

इसी कारण गिर्राज जी को श्रीकृष्णस्वरूप कहा जाता है।

ब्रजवासियों ने पूजन के बाद गिर्राज महाराज को 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित किये थे।

उधर अपनी उपेक्षा से नाराज इन्द्र ने संवर्तक मेघों को ब्रज को डुबोने का आदेश दिया था ।

मूसलाधार वर्षा और बाढ़ जैेसे हालात होने पर कान्हा ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन को ऊपर उठाया तथा ब्रजवासियों से भी अपनी लाठी गोवर्धन पर्वत के नीचे लगाने के लिए कहा था।

इसके बाद ब्रजवासी अपना सामान लेकर पर्वत के नीचे आ गए।

भारी बारिश का ब्रजवासियों पर असर न होता देख जब इन्द्र वहां आया तो उसे पता चला कि जो हुआ वह श्रीकृष्ण के कहने पर हुआ था तो उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की ।

यह संस्था उसी की वर्षगांठ के रूप हर साल छप्पन भोग का आयोजन करती है।

इस आयोजन में गर्भगृह के बाहरी भाग को जहां राजमहल के रूप में सजाया गया था वहीं गर्भगृह में गिर्राज प्रभु और राधारानी को चांद सितारोें की उपस्थित में विगृह के रूप में स्थापित किया गया था।

गिर्राज प्रभु को न केवल मोर पंख से युक्त सोने की वंशी धारण कराई गई थी बल्कि ठाकुर का श्रंगार मोती, मूंगा, नीलम, पुखराज, पन्ना, माणिक्य, हीरा , टोन्जनाइट, एलेक्जेन्डराइट जैसे रत्नों और सोने चांदी के आभूषणों तथा भारत में उपलब्ध फूलों के साथ ही मारीशश, मलेशिया ,थाईलैन्ड से मंगाए गए फूलों व अति सुन्दर पोशाक से किया गया था।

गिर्राज तलहटी को भी इन्ही फूलों से सजाया गया था।

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